पूँजी और सत्ता का खेल अब हिन्दी
साहित्य में जोरों पर है। साहित्य जगत पर बाज़ार का प्रभाव अब स्पष्ट नज़र आता है।
मठों और पीठों के संचालक, बड़े अफसर, पूँजी के बल
पर साहित्य को किटी पार्टी में बदलने के इच्छुक, पैकेजिंग और
मार्केटिंग में माहिर दोयम दर्ज़े
के रचनाकार पूरे साहित्यिक परिदृश्य पर काबिज होने के प्रयास में लगातार लगे रहते हैं। ऐसे रचनाकारों द्वारा खुद की खातिर ‘स्पेस क्रिएट’ करने के लिए चुपचाप साहित्य कर्म में संलग्न लोकधर्मी
साहित्यकारों को लगातार नज़रअंदाज़ करने, उनको हाशिए पर धकेलने की कोशिश की जाती रही
है।
हिन्दी में बहुत से कवि हैं
जिनके लेखन पर मुकम्मल चर्चा नहीं की गयी है। ऐसे बहुत से कवि हैं जिन्होंने वैचारिक
पक्षधरता को बनाए रखते हुए लोक की अवस्थितियों व संघर्षों का यथार्थ खाका खींचा तथा सत्ता और व्यवस्था
के विरुद्ध प्रतिरोध की भंगिमा अख्तियार की लेकिन उनके रचनाकर्म पर समुचित चर्चा नहीं हो सकी। लोकोदय प्रकाशन ने ऐसे कवियों पर आलोचनात्मक श्रंखला प्रकाशित करने का
निर्णय लिया है। इस श्रंखला का नाम
होगा ‘ ‘लोकोदय आलोचना श्रंखला’। इस श्रंखला के प्रथम कवि
के रूप में
वरिष्ठ कवि तथा पत्रकार सुधीर सक्सेना के व्यक्तित्व, कृतित्व व काव्य
रचना प्रक्रिया पर एक संपादित
पुस्तक का प्रकाशन किया जाएगा किताब का संपादन
किया जाएगा। इस पुस्तक का
सम्पादन प्रद्युम्न कुमार सिंह और उमाशंकर सिंह
परमार करेंगे।
इस पुस्तक के लिए आलेख आमन्त्रित हैं। इच्छुक लेखक वर्ड फाइल के रूप में कृतिदेव या यूनिकोड फॉण्ट में अपने आलेख
परिचय तथा नवीनतम फोटो के साथ इस ई-मेल पर ३० मई २०१६ तक भेज सकते हैं।
आलेख भेजते समय यह
उल्लेख अवश्य करें कि ‘आलेख सुधीर सक्सेना पर केन्द्रित पुस्तक के लिए’ भेजा जा रहा है।
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