हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव
सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्यक्त करता है - कौशल किशोर
मित्रता और आत्मीयता का बड़ा कवि - अजीत प्रियदर्शी
मुक्तिचक्र और जनवादी लेखक मंच द्वारा प्रदत्त किये जाने वाले जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान 2018 का दो दिवसीय आयोजन बाँदा और कालिंजर में दिनांक 22 दिसम्बर और 23 दिसम्बर को सम्पन्न हुआ। यह सम्मान वरिष्ठ कवि सुधीर सक्सेना को दिया गया था अस्तु डीसीडीएफ स्थित कवि केदारनाथ अग्रवाल सभागार में आयोजित 22 दिसम्बर के आयोजन में चर्चा के केन्द्र में सुधीर सक्सेना का बहुआयामी व्यक्तित्व व रचनाकर्म रहा। अध्यक्षता वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने की व मुख्य वक्ता वरिष्ठ कवि रेवान्त के प्रधान सम्पादक एक्टिविस्ट श्री कौशल किशोर थे। अन्य वक्ताओं में लखनऊ से आये युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी, युवा कवि बृजेश नीरज और फतेहपुर से आये युवा कवि आलोचक प्रेमनन्दन रहे। शुरुआत में संचालक उमाशंकर सिंह परमार ने सुधीर सक्सेना का परिचय देते हुए उनके साथ अपने सम्बन्धों व उनकी कविताओं पर विस्तार से अपनी बात रखी। बाँदा में केदारबाबू के शिष्य वरिष्ठ गीतकार जवाहर लाल जलज ने सभी आगन्तुकों का स्वागत करते हुए जनकवि केदारनाथ अग्रवाल सम्मान की रूपरेखा और सार्थकता सबके सामने रखी व इस सम्मान को एक आन्दोलन का प्रतिफलन कहते हुए बाँदा में केदार की विरासत को आगे बढ़ाने का संकल्प लिया। लखनऊ से आए मुख्य अतिथि वरिष्ठ कवि कौशल किशोर ने सुधीर सक्सेना, स्वप्निल और अपनी मित्रता के संस्मरण सुनाये तथा आज के खतरों से आगाह करते हुए इन खतरों के समक्ष बौनी पड़ रही पत्रकारिता पर दुख व्यक्त किया और कहा कि हिन्दी पत्रकारिता की पक्षधरता सच्चाई रही है वह सच से कभी पीछे नहीं रही। आज रघुवीर सहाय और सुधीर सक्सेना जैसे पत्रकारों को हमें अपने आदर्श पर रखना होगा। सुधीर सक्सेना की 'समरकन्द में बाबर' और 'अयोध्या' कविता का जिक्र करते हुए उनकी राजनैतिक विचारधारा और काव्य मर्म का उदघाटन किया। जनवादी लेखक मंच के सचिव प्रद्युम्न कुमार सिंह ने सुधीर सक्सेना पर सम्मान पत्र का वाचन किया और मुक्तिचक्र सम्पादक गोयल जी ने अंग वस्त्र भेंट किया। रामावतार साहू, रामकरण साहू, नारायण दास गुप्त, मुकेश गुप्त, रामप्रताप सिंह परिहार ने अतिथियों को अंंग वस्त्र देकर स्वागत किया। अध्यक्षता कर रहे वरिष्ठ कवि स्वप्निल श्रीवास्तव ने प्रतीक चिह्न देकर सुधीर सक्सेना को जनकवि केदार सम्मान से सम्मानित किया। युवा आलोचक अजीत प्रियदर्शी ने सुधीर सक्सेना के कविता संग्रह 'किताबें दीवार नहीं जोतीं' का जिक्र करते हुए कहा आज हमारे समाज का सबसे बड़ा संकट है कि मैत्री भाव घटता जा रहा है। सुधीर सक्सेना ने अपने सौ मित्रों पर कविता लिखकर और विभिन्न शहरों पर कविता लिखकर आत्मीयता का रचाव किया है। प्रेमनन्दन ने कहा कि सुधीर सक्सेना ने सबसे अधिक और शानदार कविताएँ शहरों पर लिखी हैं। वह जिस भी शहर से जुड़े उसी पर लिखा। सम्मानित कवि सुधीर सक्सेना ने अपने संक्षिप्त वक्तव्य में बाँदा की धरती और बाँदा के साथ अपने लम्बे जुड़ाव का जिक्र किया। उन्होंने कहा कि बाँदा को केन बाँधती है या फिर कविता और कोई भी बाँदा को घेर नहीं सकता। बाँदा की संस्कृति कविता की संस्कृति है, तुलसी से लेकर अब तक यह संस्कृति अडिग और अविचल भाव से चली आ रही है, निरन्तर आगे बढ़ती रहेगी। केदार की धरती में केदार सभागार मेंं केदार की विरासत के लिए काम कर रहे मुक्तिचक्र और जनवादी लेखक मंच द्वारा केदार सम्मान पाकर मैंं धन्य हूँ। सुधीर सक्सेना ने अपनी पाँच कविताओं का पाठ किया- काशी में प्रेम, विडम्बना कविता को लोगों ने खूब सराहा। युवा ग़ज़लकार कालीचरण सिंह ने बीच-बीच में अपनी ग़जल कहकर श्रोताओं की तालियाँ बटोरीं और सम्मान समारोह में रसवत्ता बनाये रखी। अध्यक्षता कर रहे स्वप्निल श्रीवास्तव ने सुधीर सक्सेना को अपनी पीढ़ी का एकमात्र कवि कहा जिसने सबसे अधिक लम्बी कवितायें लिखी और सुधीर सक्सेना को यह सम्मान मिलने पर प्रसन्नता व्यक्त करते हुये कहा कि हम सब इस ने समारोह में उपस्थित होकर फिर एक बार केदार की धरती की ऊर्जा देख ली । मुक्तिचक्र सम्पादक गोपाल गोयल ने केदार सम्मान की पीठिका बताते हुए कहा कि सुधीर सक्सेना कौशल किशोर स्वप्निल जी का बाँदा आना हमारे लिए बडी उपलब्धि है। गोष्ठी को वरिष्ठ अधिवक्ता आनन्द सिन्हा , रणवीर सिंह चौहान , रामकरण साहू, रामावतार साहू , चन्द्रपाल कश्यप जी ने भी सम्बोधित किया । और अन्त में डीसीडीएफ अध्यक्ष सीपीआईएम नेता वामपंथी विचारक सुधीर सिंह ने सभी आगन्तुकों का आभार व्यक्त किया ।
बुन्देली अवशेषों में कविता की चमक
बाँदा से लगभग साठ कीमी दूर मध्य प्रदेश की सीमा सतना और पन्ना से सटा हुआ चन्देलकालीन दुर्ग कालिंजर जनपद बाँदा की ऐतिहासिक धरोहर है कालिंजर को बाँदा के लोग भावुकता की हद तक प्यार करते हैं यही कारण है सरकारी बेरुखी और संसाधनों के अभाव के व खण्डित तथा ध्वस्त होने के बावजूद भी अपने भीतर बुन्देलखण्ड के पुरातन वैभव की कथा कह रहा है । रानी महल, अमान सिंह का महल, विभिन्न शैली में नृत्य आकृतियों से जटित दीवारों से युक्त विशाल रंगमहल, मृगदाव, शिव मन्दिर, बावडी, पोखर, तालाब, सैनिक कक्ष, राजदरबार, जैसे आकर्षक निर्मितियों को देखकर प्रतीत होता है कि बुन्देलखण्ड का स्थापत्य किसी जिन्दा कविता से कमतर नही है। रंगमहल में प्रवेश करते ही शीतलता का आभास होता है लम्बा चौडा आँगन और आँगन के चारो तरफ़ बारामदे हैं चारो तरफ ऊपर जाने की सीढिया हैं जिनसे चढ़कर हम सामने की छत पर बैठ गये इसी रंगमहल में कविता पाठ का आयोजन हुआ। रंगमहल में कविता पढ़ना एक बार पुनः इतिहास की ओर लौटना है । इस ध्वन्सावशेष मे कभी रात दिन संगीत और शब्द का झंकृत निनाद रहा होगा और उसी जगह पर पुनः शब्दों की गूँज उठी । अध्यक्षता स्वप्निल श्रीवास्तव ने की और संचालन स्वयं सुधीर सक्सेना ने किया । पहली कविता संचालक ने पढ़ी जिसकी सराहना सभी ने की । जवाहर लाल जलज ने ओजस्वी शब्दों में व्यक्ति की जिजिविषा और जीवन के मध्य अन्तराल पर बात रखी । वरिष्ठ कवि कौशल किशोर ने "खोदा पहाड़ निकली चुहिया" कविता का पाठ किया जिसमे आज के बुद्धिजीवी वर्ग के खोखलेपन को उजागर किया गया है। प्रेमनन्दन ने जनवादी चेतना की प्रगतिशील कविताओं का पाठ किया उनकी कविता मेरा गाँव को लोगों ने पसंद किया । पीके सिंह ने अपनी प्रेम कविताओं का पाठ कर सबका मन मोह लिया । बृजेश नीरज ने हिन्दी गज़लों को पाठ किया बृजेश ने परिनिष्ठित भाषा मे ग़जल के व्याकरण का निर्वाह कर शानदार उदाहरण पेश किया। युवा ग़ज़लकार कालीचरण सिंह ने तरन्नुम की गज़ल कहीं उनकी गजल "कहीं और चलें चलें" को सबने सराहा। अजीत प्रियदर्शी ने अपनी निजी पीडाओं के आलोक में समूचे समाज और समाज के ठेकेदारों की नकली संवेदना को अपनी कविताओं में दिखाया। उमाशंकर सिंह परमार ने लौटना और सन्नाटा कविता का पाठ किया दोनो कवितायें रेवान्त के ताजा अंक में प्रकाशित हैं। जनवादी लेखक मंच के कोषाध्यक्ष नारायण दास गुप्त ने अपने बुन्देली लोक गीत खागा सकल पट्यौला खा गा और साईकिल के पिछले टायर का अगला होना कविताओं का पाठ किया। अध्यक्षता कर रहे स्वप्निल श्रीवास्तव में एक प्रेम कविता और एक बंजारे कविता का पाठ किया। उनकी बंजारे कविता की पंक्ति "जितना मै आगे बढता गया उतना ही पीछे छूटता गया" कालिंजर के इतिहास को भी व्यक्ति कर देती है समय और इतिहास जितना आगे बढता गया ऊँची पहाडी में स्थित यह ऐतिहासिक दुर्ग अपनी भव्यता खोता गया। अन्त में संचालक, कवि केदार सम्मान से सम्मानित कवि सुधीर सक्सेना ने घोषणा की कि दुनिया इन दिनो कवि केदारनाथ अग्रवाल पर जल्द ही विशेषांक लायेगी साथ ही कविता पाठ के समापन की घोषणा की।
उमाशंकर सिंह परमार
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