Monday 28 January 2013

आस्था


यह यशोदा जी की पहली कविता है।

हे ईश्वर.....
सदियों से बने हुए हो
मूर्ति तुम....
 ...........
तुम्हें परोस कर
खिलाने का बहाना
अब त्याग दिया
    लोगों ने ....
अब
नोच-नोच कर
खाने लगे हैं तुम्हें ही 
तुम पर आस्थावान
लोगों को
     मोहरा बनाकर .....
         - यशोदा

Sunday 27 January 2013

इक चमेली के मंडवे तले

          - मख़दूम मोहिउद्दीन


इक चमेली के मंडवे तले 
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर 
दो बदन प्यार की आग में जल गए 

प्यार हर्फे़ वफ़ा[1]... प्यार उनका खु़दा 
प्यार उनकी चिता ।। 

दो बदन प्यार की आग में जल गए ।। 

ओस में भीगते, चाँदनी में नहाते हुए 
जैसे दो ताज़ा रू[2] ताज़ा दम फूल[3] पिछले पहर 
ठंडी ठंडी सबक रौ[4] चमन की हवा 
सर्फे़ मातम[5] हुई 
काली काली लटों से लिपट गर्म रुख़सार[6] पर 
एक पल के लिए रुक गई  

दो बदन प्यार की आग में जल गए ।। 

हमने देखा उन्हें 
दिन में और रात में 
नूरो-ज़ुल्मात में 
मस्जिदों के मीनारों ने देखा उन्हें 
मन्दिरों के किवाड़ों ने देखा उन्हें 
मयकदे की दरारों ने देखा उन्हें ।। 

दो बदन प्यार की आग में जल गए  

अज़ अज़ल ता अबद[7] 
ये बता चारागर[8] 
तेरी ज़न्बील[9] में 

नुस्ख़--कीमियाए मुहब्बत[10] भी है 
कुछ इलाज मदावा--उल्फ़त भी है। 
इक चम्बेली के मंडवे तले 
मयकदे से ज़रा दूर उस मोड़ पर 
दो बदन प्यार की आग में जल गए
शब्दार्थ:
1.  वफ़ादारी की बात
2.  आत्मा
3.  ताज़ा खिले हुए फूल
4.  मंद गति से चलने वाली
5.  उदासी से घिर गई
6.  गाल
7.  दुनिया के पहले दिन से दुनिया के अंतिम दिन तक
8.  वैद्य, हकीम
9.  झोली
10.                 प्रेम के उपचार का नुस्खा

Saturday 26 January 2013

आपकी याद आती रही रात भर


- फ़ैज़ अहमद फ़ैज़



मख़दूम[1] की याद में-1

"आपकी याद आती रही रात-भर"
चाँदनी दिल दुखाती रही रात-भर

गाह जलती हुई, गाह बुझती हुई
शम--ग़म झिलमिलाती रही रात-भर

कोई ख़ुशबू बदलती रही पैरहन[2]
कोई तस्वीर गाती रही रात-भर

फिर सबा[3] सायः--शाख़े-गुल[4] के तले
कोई क़िस्सा सुनाती रही रात-भर

जो आया उसे कोई ज़ंजीरे-दर[5]
हर सदा पर बुलाती रही रात-भर

एक उमीद से दिल बहलता रहा
इक तमन्ना सताती रही रात-भर

मास्को, सितंबर, 1978
शब्दार्थ:
1.    उर्दू के मशहूर कवि, जिन्होंने तेलंगाना आंदोलन में हिस्सा लिया था। उनकी ग़ज़ल से प्रेरित होकर हीफ़ैज़ने यह ग़ज़ल लिखी है
2.    वस्त्र
3.    ठंडी हवा
4.    गुलाब की टहनी की छाया
5.    दरवाज़े कि साँकल


गणतंत्र की क्रांति


गणतंत्र दिवस की आप सबको ढेरों बधाई!
 भाई अभय की दो रचनायें इस गणतंत्र के जनों को सप्रेम भेंट की जा रही हैं।

तस्वीर ये बदलनी है आवाज़ करो.
हुंकार है, देश अब आज़ाद करो.

मालिक हैं मुख़्तार हैं
फिर भी क्यों लाचार हैं?

Friday 25 January 2013

अभिव्यक्ति


     कुछ साहित्य के सुधी जन साहित्य की बिखरी कड़ियों को पिरोने का प्रयास कर रहे हैं। उनके प्रयासों के कुछ उदाहरण के रूप में ये तीन लिंक यहां दिए जा रहे हैं।
इन्हें देखें और अपने सुझाव दें।


1- अभिव्यक्ति : सुरुचि की - भारतीय साहित्य, संस्कृति, कला और दर्शन पर आधारित।


2- अगर कोई विचार मन में कौंध रहा है, तो कलम उठाइए


3- छुट्टी की अर्जी:
     केवल एक कागज या दस्तावेज ही नहीं....
     एक भावना है..
     एक आशा है उम्मीद है...
     और हक भी है एक धमकी है..
     बहाना है....


बसंत के बिखरे पत्ते: लिखने से बनेगी बात...

अगर कोई विचार मन में कौंध रहा है, तो कलम उठाइए

Thursday 24 January 2013

धरोहर: अर्जी छुट्टी की..........संतोष सुपेकर

छुट्टी की अर्जी:
केवल एक कागज या दस्तावेज ही नहीं....
एक भावना है..
एक आशा है उम्मीद है...
और हक भी है एक धमकी है..
बहाना है.... 

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...