Tuesday 19 April 2016

प्रदीप कुशवाहा की कविता

मेरे पन्ने -----------

- प्रदीप कुमार सिंह कुशवाहा

जीवन पृष्ठ मेरे
हाथों में तेरे
खुली किताब की तरह
कुछ चिपके पन्ने कह रहे
दास्तान पढ़ने को
है अभी बाक़ी
लौट आया हूँ फिर
चाहता हूँ
रुकूँ अभी
हवा के तेज झोंके
जीवन पृष्ठों को
तेजी से बदलते हुए
चिपका हूँ
दीवार के साथ
बूझेगा अब कौन
न है मधुशाला
न उसमे साकी 

परिचय- चंद्रेश कुमार छतलानी



चंद्रेश कुमार छतलानी
जन्म - २९ जनवरी १९७४
जन्म स्थान - उदयपुर (राजस्थान)
शिक्षा - एम. फिल. (कंप्यूटर विज्ञान), लगभग १०० प्रमाणपत्र (ब्रेनबेंच, स्वीडन से)
लेखन - पद्य, कविता, ग़ज़ल, गीत, कहानियाँ
पता -   ४६, प्रभात नगर, सेक्टर - , हिरण मगरी, उदयपुर (राजस्थान)
फोन - ९९२८५ ४४७४९
कार्य - 14 वर्षों से कंप्यूटर सोफ्टवेयर एवं वेबसाईट डवलपमेंट का कार्य

अभी जनार्दन राय नागर राजस्थान विद्यापीठ विश्वविद्यालय में सहायक आचार्य (कंप्यूटर विज्ञान)


मनोज शुक्ल 'मनुज' के छंद

मनोज शुक्ल "मनुज"
(१)
यह देश जहाँ रणचंडी, काली, दुर्गा पूजी जाती हैं, 
यह देश जहाँ गार्गी, अनुसुइया, पाला आदर पाती हैं. 
यह देश जहाँ लक्ष्मीबाई, इंदिरा जी ने बलिदान दिया, 
यह देश जहाँ दुर्गा भाभी ने आजादी का ज्ञान दिया. 

यह देश जहाँ माया, ममता, जयललिता शासन करती हैं, 
यह देश जहाँ सोनिया गांधी सत्ता में भी दम भरती हैं.
हैं जहाँ किरण बेदी, पी.टी.ऊषा, मीरा, सुषमा स्वराज, 
प्रतिभा पाटिल थीं महामहिम करतीं वसुंधरा अभी राज. .

नारी की शक्ति गर्जना जब चहुँ ओर सुनाई देती है,
कुछ नपुंसकों कापुरुषों को कमजोर दिखाई देती है. 
यह प्रण समाज को लेना है बन जाएँगे जीवंत काल,
जो बहू बेटियों को ताके उसकी लेंगे आँखें निकाल. 

जो पहुँचेगी तन तक बलात वह भुजा उखाड़ी जाएगी, 
जो देह करेगी कृत्य घृणित जिन्दा ही गाड़ी जाएगी. 
दुःशासन का फिर लहू द्रोपदी के केशों को धोएगा, 
जो सीता पर कुदृष्टि डाली रावण प्राणों को खोएगा.




(२)
धन की गर्मी बढ़ रही, मचा हुआ उत्पात. 

बुद्धि दम्भ से झूमती, बिकते हैं ज़ज्बात. 

सूख गयी संवेदना, हुआ 'मनुज' बेचैन. 

बरसे बरखा नेह की तब मानों बरसात. 



(३)
मार कुंडली बुद्धि पर, शंका बैठी आय. 

संचित सिंचित स्नेह को, गई तुरत ही खाय. 

गई तुरत ही खाय, जिंदगी हुई खार है,

नहीं आस-विश्वास 'मनुज' तब ख़ाक प्यार है. 


लघुकथा- प्रतीक्षा

                                                                          - श्रीप्रकाश
जाड़े के दिन थे और शाम का समय था। मैं जिस मकान में रहता था उसके सामने ही मेरे परिचितों की चप्पल-जूते की दुकानें थीं। मैं भी कभी-कभी मन बहलाने के उद्देश्य से उन दुकानों पर बैठा करता था। उस दिन जब मैं एक दूकान पर बैठा था, ग्राहकों की भीड़ थी। सहसा उसी भीड़ में से एक गोरे-चिट्टे आदमी ने चप्पल की डिमांड की। कई जोड़ी चप्पल देखने के उपरांत उसने दाम ज्यादा होने की वजह से चप्पल नहीं खरीदी और कुछ देर यूँ ही बैठा रहा। शक्ल-सूरत देखकर मैंने अनुमान लगाते हुए पूछा, ‘क्या आप अध्यापक हैं?’ उसने हाँ में उत्तर दिया और अपने को भातखंडे संगीत विश्वविद्यालय के संगीत शिक्षक के रूप में अपना पूरा परिचय दिया।
शिक्षक होने के नाते मैं उसे अपने कमरे पर लाया और यथासामर्थ्य आवभगत की। उसने बात ही बात में कहा- ‘कल मुझे एक संगीत के कार्यक्रम में कानपुर जाना है किन्तु मेरी मौजूदा चप्पल टूटी होने के कारण कार्यक्रम में जाना उचित नहीं लगता। मैंने मानवीयता को ध्यान में रखते हुए अपनी कुछ दिन पहले खरीदी गयी नई चप्पल दे दी। उसने संकोच के साथ चप्पल पहन ली; और दो दिन बाद आने पर नई चप्पल ले लूँगा तब आपकी चप्पल वापस कर दूंगा, इस वायदे के साथ उसने अपनी पुरानी चप्पल कमरे पर छोड़ दी और मेरी चप्पल पहन कर चला गया।
मैं बाहर तक उसको विदा करने आया। चूँकि वह वय में मुझसे बड़ा था और अपने को ब्राह्मण बताया इसलिए मैंने चरणस्पर्श कर उसको विदा किया।
किन्तु मैं आज तक उसकी प्रतीक्षा कर रहा हूँ!
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संपर्क- 9/48 साहित्य सदन, कोतवाली मार्ग, महमूदाबाद (अवध), सीतापुर 261203

Monday 18 April 2016

परिचय- धर्मेन्द्र कुमार 'सज्जन'

नाम: धर्मेन्द्र कुमार सिंह

उपनाम: सज्जन

जन्मतिथि: 22 सितंबर, 1979

जन्मस्थान: प्रतापगढ़, उत्तर प्रदेश

शिक्षा: प्रौद्यौगिकी स्नातक (प्रौद्योगिकी संस्थान, काशी हिंदू विश्वविद्यालय, वाराणसी)
      प्रौद्यिगिकी परास्नातक (भारतीय प्रौद्योगिकी संस्थान, रुड़की)

संप्रति: एनटीपीसी लिमिटेड की कोलडैम परियोजना में प्रबंधक (सिविल) के पद पर
कार्यरत

ब्लॉग: www.dkspoet.in

प्रकाशन: 1. ग़ज़ल कहनी पड़ेगी झुग्गियों पर (ग़ज़ल संग्रह)
       2. परों को खोलते हुए - 1 (साझा संकलन में सात कवितायें)
       3. गुफ़्तगू पत्रिका में सौ शे'र
       4. विभिन्न जालस्थलों, अख़बारों एवं मुद्रित पत्र पत्रिकाओं में समय समय समय पर
          गीत, नवगीत, कविताएँ, ग़ज़लें, छंद एवं कहानियों का नियमित प्रकाशन।

संपर्क: धर्मेन्द्र कुमार सिंह, प्रबंधक, सिविल निर्माण विभाग – बाँध,
एनटीपीसी लिमिटेड,
कोलडैम हाइड्रो पावर प्रोजेक्ट,
पोस्ट: बरमाना,
जिला: बिलासपुर, हिमाचल प्रदेश, भारत – 174013

चलभाष: 09418004272

ई-मेल: dkspoet@gmail.com, dkspoet@rediffmail.com, dkspoet@yahoo.com ,
dksingh05@ntpc.co.in

परिचय- अरुण भारती

जन्म-       1 मई 1952, धामी, हिमाचल प्रदेश
विधाएँ-       कहानी, उपन्यास, नाटक
मुख्य कृतियाँ-      
कहानी संग्रह-  औरतें तथा अन्य कहानियाँ, भेड़िए
उपन्यास-     सूखी नदी का पुल
नाटक-       संशय, संतान, जंग

सम्मान-      सहस्त्राब्दी, हिंदी सेवी पुरस्कार, गुलेरी पुरस्कार

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...