Sunday 28 July 2013

धर्म संगम

शुभम् सुहृद मित्रों...
दोस्तों रमज़ान चल रहे हैं, मुस्लिम भाइयों का पवित्र महीना, धर्म कोई भी हो सभी की मूल शिक्षाएं लगभग वही हैं। अब हम किसी धर्म या संस्कृति को प्रतिष्ठा का विषय मान बैठें तो हमारी अज्ञानता ही तो है। हम 'सत्य' को ही ले लें, तो सभी धर्म सभाषी हैं।
हमारा सनातन धर्म कहता है-
''स वै सत्यमेव वदेत् । एतद्धवै देवा''
शतपथ ब्राम्हण (अर्थात् सत्य का अनुशीलन करने वाले देवत्व को प्राप्त होते हैं। 
वहीं पवित्र इस्लाम कहता है- 
''वला तक़ूलूऽअलऽऽलू अल्लाहि-इल्लऽऽल्हक्क'' 
क़ुरान शरीफ ४/१७९ (अल्हाह की शान में कभी झूठ का प्रयोग मत करो, सदैव सच बोलो।  
सिख धर्म की बात करें तो गुरुनानक जी के वचन हैं- 
 ''रे मन डीगि न डोलियै सीधे मारग धाओ। 
पाछे बाधु डराउणा आगै अगिनि तलाओ।।'' 
बौद्धों का भी मत है- 
''एकं धम्मं अतीतस्स मुसावादिस्स जन्तुनो।'' 
Bible की सुनें तो- 
''Great is truth and might above all things'' 
अन्य धर्म ऐसी ही प्रतिध्वन करते हैं, मतलब सभी धर्म एक ही है, इसलिए सभी धर्मों के लिए समान निष्ठा के साथ चलते हैं, आज के चुनिंदा सूत्रों पर- 


हम जब मथुरा भ्रमण के लिए गए थे तो हमें वहां गाइड और अन्य लोगों से यह जानकारी मिली थी कि अभी भी प्रतिदिन रात को निधि वन में कृष्ण आते हैं... 

उस जगह पर ले चलो जिस जगह पर छांव हो प्रकृति रूनझुन खग की गुनगुन धरती हरित भाव हो खिल उठें पुष्प ... 

बच्चे ही देश के भविष्य हैं. उनके ‘चरित्र निर्माण’ की जिम्मेवारी पैरेंट्स की है. 
ऐसे में बच्चों के सामने पैरेंट्स को आदर्श बनना होगा. ...

मैं डरा-डरा सहमा सा  शाम के धुंधलके में.........  
जैसे ही अपने 'आज' को  पोटली में समेटकर  चार कोस आग...

इन शब्दों को क्या कहूँ....
कभी खुद के लिखे शब्द जख्म दे जाते है....... 
जो हम कहते नही खुद से, 

मेरा घर    
 कहते है  घर गृहणी का होता है  
 लेकिन यह सच नहीं 

मन के आकाश के विभिन्न रंग ------ 

तेरे लिए   

तलाश मेरे ‘मैं’ की ... 
हम के हुजूम में सब 'मैं' होते हैं 
हम कोई आविष्कार नहीं करता  
हाँ वह 'मैं' को अन्धकार दे सकता है
  
एक ही हल 'शून्य' 
'यहाँ' सब कुछ, 
जो पाया जा सकता है पलक झपकते ही खो जाता है, 
इतनी जल्दी कि तुम उसकी एक रेखा भी ढूढ़ पाने में रह जाते हो असमर्थ;... 

चंपा के फूल 

जिसे देख सारे दुख जाते थे भूल मुरझाये 
आज वही चम्पा के फूल आसमान से बरसा पानी या आग जो कभी न सोये वह पीर गयी जाग नाव बही हवा चली कितनी...

धुंध में डूबा ग्रीष्माकाश 

जुलाई अगस्त के महीने मध्यपूर्व में गर्मी के होते हैं। 
कभी ऐसी गर्मी देखी है जब आसमान कोहरे से ढक जाए?   

ईश्वर / मनुष्य / प्रकृति (तीन कवितायें ) 

ईश्वर उसकी आँखें खुली समझ   
उसके लिए एक नारियल फोड़ दो एक बकरा काट दो, 
उसकी आँखें बंद समझ डंडी मार लो, 
बलात्कार कर लो या गला र...

... अन्त भी क़ुरान शरीफ़ की पवित्र पंक्तियों से, उर्दू लिखना तो आता नहीं इसलिए उच्चारण के अनुसार हिन्दी में प्रयास करती हूं- 
व ज़रू ज़ाहिरडल् इस्मि व बातिनहू, 
इन्नडल्लज़ीन यक्सबूनचल्इस्म सपुज़्ज़ौन बिमा, 
कानू पक्तरिफ़ून। 
अर्थात पाप का प्रतिफल इन्सान को अवश्य भोगना पड़ता है, इसलिए अपने बाह्य और आन्तरिक दुष्कर्मों का परिष्कार करें। 
नमाज़ और उर्दू के जानकार भाई बताएंगें, सही है न? 

रमजान की शुभकामनाओं के साथ... 
ख़ुदा हाफ़िज!

Thursday 25 July 2013

अकाल-दर्शन

             - धूमिल


भूख कौन उपजाता है :
वह इरादा जो तरह देता है
या वह घृणा जो आँखों पर पट्टी बाँधकर
हमें घास की सट्टी मे छोड़ आती है?

उस चालाक आदमी ने मेरी बात का उत्तर
नहीं दिया।
उसने गलियों और सड़कों और घरों में
बाढ़ की तरह फैले हुए बच्चों की ओर इशारा किया
और हँसने लगा।

मैंने उसका हाथ पकड़ते हुए कहा
'
बच्चे तो बेकारी के दिनों की बरकत हैं'
इससे वे भी सहमत हैं
जो हमारी हालत पर तरस खाकर, खाने के लिए
रसद देते हैं।
उनका कहना है कि बच्चे
हमें बसन्त बुनने में मदद देते हैं।

लेकिन यही वे भूलते हैं
दरअस्ल, पेड़ों पर बच्चे नहीं
हमारे अपराध फूलते हैं
मगर उस चालाक आदमी ने मेरी किसी बात का उत्तर
नहीं दिया और हँसता रहाहँसता रहाहँसता रहा
फिर जल्दी से हाथ छुड़ाकर
'
जनता के हित में' स्थानांतरित
हो गया।

मैंने खुद को समझायायार!
उस जगह खाली हाथ जाने से इस तरह
क्यों झिझकते हो?
क्या तुम्हें किसी का सामना करना है?
तुम वहाँ कुआँ झाँकते आदमी की
सिर्फ़ पीठ देख सकते हो।

और सहसा मैंने पाया कि मैं खुद अपने सवालों के
सामने खड़ा हूँ और
उस मुहावरे को समझ गया हूँ
जो आज़ादी और गांधी के नाम पर चल रहा है
जिससे भूख मिट रही है, मौसम
बदल रहा है।
लोग बिलबिला रहे हैं (पेड़ों को नंगा करते हुए)
पत्ते और छाल
खा रहे हैं
मर रहे हैं, दान
कर रहे हैं।
जलसों-जुलूसों में भीड़ की पूरी ईमानदारी से
हिस्सा ले रहे हैं और
अकाल को सोहर की तरह गा रहे हैं।
झुलसे हुए चेहरों पर कोई चेतावनी नहीं है।

मैंने जब उनसे कहा कि देश शासन और राशन...
उन्होंने मुझे टोक दिया है।
अक्सर ये मुझे अपराध के असली मुकाम पर
अँगुली रखने से मना करते हैं।
जिनका आधे से ज़्यादा शरीर
भेड़ियों ने खा लिया है
वे इस जंगल की सराहना करते हैं
'
भारतवर्ष नदियों का देश है।'

बेशक यह ख्याल ही उनका हत्यारा है।
यह दूसरी बात है कि इस बार
उन्हें पानी ने मारा है।

मगर वे हैं कि असलियत नहीं समझते।
अनाज में छिपे उस आदमी की नीयत
नहीं समझते
जो पूरे समुदाय से
अपनी गिज़ा वसूल करता है
कभी 'गाय' से
कभी 'हाथ' से

'
यह सब कैसे होता है' मैं उसे समझाता हूँ
मैं उन्हें समझाता हूँ
यह कौनसा प्रजातान्त्रिक नुस्खा है
कि जिस उम्र में
मेरी माँ का चेहरा
झुर्रियों की झोली बन गया है
उसी उम्र की मेरी पड़ौस की महिला
के चेहरे पर
मेरी प्रेमिका के चेहरे-सा
लोच है।

ले चुपचाप सुनते हैं।
उनकी आँखों में विरक्ति है :
पछतावा है;
संकोच है
या क्या है कुछ पता नहीं चलता।
वे इस कदर पस्त हैं :

कि तटस्थ हैं।
और मैं सोचने लगता हूँ कि इस देश में
एकता युद्ध की और दया
अकाल की पूंजी है।
क्रान्ति
यहाँ के असंग लोगों के लिए
किसी अबोध बच्चे के
हाथों की जूजी है।

Friday 19 July 2013

निर्झर टाइम्स 19 - जुलाई


प्रस्तुतकर्ता : सरिता भाटिया


प्रस्तुतकर्ता : रविकर


प्रस्तुतकर्ता : Virendra Kumar Sharma


प्रस्तुतकर्ता : सुशील


प्रस्तुतकर्ता : Shashi Purwar 
 
प्रस्तुतकर्ता : Mukesh Kumar Sinha
प्रस्तुतकर्ता : Shikha Kaushik
प्रस्तुतकर्ता : Shashi Purwar
प्रस्तुतकर्ता : संगीता स्वरुप ( गीत )
प्रस्तुतकर्ता : Ranjana Verma

Monday 15 July 2013

झाड़खंड का दुर्भाग्य !

१५ नवम्बर २००० को बिहार के प्राकृतिक संसाधन से भरपूर वनांचल क्षेत्र को झारखण्ड नाम देकर अलग कर दिया गया. तर्क यह दिया गया कि छोटे राज्य होने से विकास की संभावनाएं बढ़ेगी. अधिकांश उद्योग धंधे और खनिज सम्पदा इसी क्षेत्र में है, बिहार का बाकी हिस्सा मैदानी इलाका है, जहाँ कृषि पैदावार अच्छी होती है.
वस्तुत: राजनैतिक स्तर पर 1949 में जयपाल सिंह के नेतृत्व में झारखंड पार्टी का गठन हुआ जो पहले आमचुनाव में सभी आदिवासी जिलों में पूरी तरह से दबंग पार्टी रही। जब राज्य पुनर्गठन आयोग बना तो झारखंड की भी माँग हुई जिसमें तत्कालीन बिहार के अलावा उड़ीसा और बंगाल का भी क्षेत्र शामिल था। आयोग ने उस क्षेत्र में कोई एक आम भाषा न होने के कारण झारखंड के दावे को खारिज कर दिया। 1950 के दशकों में झारखंड पार्टी बिहारमें सबसे बड़ी विपक्षी दल की भूमिका में रहा, लेकिन धीरे धीरे इसकी शक्ति में क्षय होना शुरु हुआ। आंदोलन को सबसे बड़ा आघात तब पहुँचा, जब 1963 में जयपाल सिंह ने झारखंड पार्टी को बिना अन्य सदस्यों से विचार विमर्श किये कांग्रेस में विलय कर दिया। इसकी प्रतिक्रिया स्वरुप छोटानागपुर क्षेत्र में कई छोटे-छोटे झारखंड नामधारी दलों का उदय हुआ जो आमतौर पर विभिन्न समुदायों का प्रतिनिधित्व करती थी और विभिन्न मात्राओं में चुनावी सफलताएँ भी हासिल करती थीं।
१५ नवम्बर २००० से १८ मार्च २००३ तक भाजपा के बाबूलाल मरांडी झारखण्ड के मुख्यमंत्री रहे. बाद में पार्टी में आतंरिक विरोध के चलते बाबूलाल मरांडी को कुर्सी छोड़नी पड़ी और अर्जुन मुंडा को मुख्य मंत्री बनाया गया. इसके बाद शिबू सोरेन मात्र दस दिन के लिए मुख्य मंत्री बने, और समर्थन नहीं जुटा पाने के कारण इस्तीफ़ा देना पड़ा. फिर अर्जुन मुंडा, मधु कोड़ा, शिबू सोरेन, राष्ट्रपति शासन, शिबू सोरेन, राष्ट्रपति शासन, अर्जुन मुंडा और फिर राष्ट्रपति शासन. अब उम्मीद है कि शिबू सोरेन के पुत्र हेमंत शोरेन कांग्रेस के समर्थन से झारखण्ड के मुख्य मंत्री बनने वाले हैं, मतलब कुल १३ साल के ही अन्दर इस राज्य को तीन बार राष्ट्रपति शासन और नौ मुख्य मंत्री को झेलना पड़ा.
शिबू सोरेन का दुर्भाग्य या अति महत्वाकांक्षा ही कहा जायेगा कि झारखण्ड मुक्ति मोर्चा के संस्थापक, झारखण्ड आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाने के बाद भी वे मुख्य मंत्री के रूप में ज्यादा दिन स्वीकार नहीं किये गए. इन्हें इस क्षेत्र का गुरूजीभी कहा जाता है. इन्हें दिशोम गुरुकी उपाधि से भी नवाजा गया है. शिबू सोरेन ने झारखण्ड आन्दोलन में सक्रिय भूमिका निभाई. कई बार सांसद और मंत्री भी बने. पर हमेशा विवादों में रहे. नरसिम्हा राव की सरकार को बचाने के लिए इन्होने अपने पांच सांसदों के साथ घूस भी लिया था. साथ ही कई हत्याकांडों में आरोपित रहे, सजा भी काटी, बीमार भी रहे, पर पुत्र-मोह में अभी वे धृतराष्ट्र को भी मात देने वाले हैं.
उनके सुपुत्र झारखण्ड के मुख्य मंत्री तो आगामी १३.०७.१३ को बन जायेंगे, पर इसके लिए उन्हें कितना समझौता करना पड़ा है, यह तो धीरे धीरे सामने आने ही वाला है. कांग्रेस इन्हें पूरी तरह से चंगुल में ले चुकी है और हेमंत सोनिया के काल्पनिक गोद में बैठ चुके हैं. झारखण्ड विकास पार्टी के सांसद डॉ. अजय कुमार विधायको के खरीद फरोख्त का आरोप लगाते हुए, प्रधान मंत्री और राष्ट्रपति तक को चिट्ठी लिख चुके हैं. उनके अनुसार करोड़ो में बिकने वाले विधायक जनता का क्या काम करेंगे, यह बात किसी के समझ से बाहर नहीं है.
अब तक जितनी पार्टियों की सरकारें यहाँ बनी है सभी ने झारखण्ड का भरपूर दोहन किया है. विकास के नाम पर प्रगति- जीरो. आदिवासियों की हालत और बदतर हुई है, नक्सल आतंक बढ़ा है, उद्योगपतियों, ब्यावासयियों, राजनेताओं की भी हत्या आम बात है. सड़कें, राष्ट्रियों मार्गों की हालत बदतर है. बिजली की हालत ऐसी है कि कल शिबू सोरेन के घर जब मीटिंग चल रही थी, तभी बिजली गुल हो गयी, अन्य समयों की बात क्या कही जाय! उद्योग विस्तार में, केवल टाटा स्टील का जमशेदपुर स्थित कारखाने की क्षमता का विकास हुआ है. इसमे राज्य सरकार का योगदान नगण्य है. १२ मिलयन टन टाटा स्टील का प्रस्तावित ग्रीन फील्ड प्रोजेक्ट अधर में लटका हुआ है. अन्य औद्योगिक घराना यहाँ उद्योग लगाना चाहते हैं, पर राजनीतिक उठापटक के दौर में कुछ खास होता हुआ नहीं दीखता.
झारखण्ड मुक्ति मोर्चा पहले भाजपा के साथ थी अब कांग्रेस के साथ है. इस तरह भाजपा का ह्रास हुआ और कांग्रेस की राजनीतिक ताकत में वृद्धि. ऐसे में बाबा रामदेव का शिबू शोरेन से आकर उनके घर में मुलाकात करना और पुराना सम्बन्ध बताना समझ से परे है. बाबा रामदेव की कूटनीति की, यहाँ क्या जरूरत थी; हो सकता है, बाद में समझ में आवे. पर जो कुछ राजनीतिक नाटक आजकल पूरे देश में चल रहा है, वह कहीं से भी भारतीय लोकतंत्र के लिए अच्छा नहीं है.
उत्तराखंड की त्रासदी का विद्रूप चेहरा और उसपर राजनीति दलों की, लाश पर की जाने वाली राजनीति भयावह है. मीडिया रिपोर्ट के अनुसार अभी भी अनगिनत लाशें यत्र तत्र सर्वत्र दीख रही हैं. पूरी तरह से बर्बाद लोग या तो घर बार छोड़ने को मजबूर हैं या अपनी किस्मत का रोना रो रहे हैं. सरकार के अनुसार राहत कार्य पूरा हो चूका है. पर जो दृश्य देखने को मिल रहा है वह भयावह है. पूरा देश दिल खोलकर मदद कर रहा है, प्रधान मंत्री और राज्य सरकार की घोषनाएं हुई है, पर धरातल पर कितना उतरता है, देखना बाकी है.
पहले नरेन्द्र मोदी की केदारनाथ मंदिर को आधुनिक बनाने का प्रस्ताव और अब अमित शाह का राम मंदिर राग. भाजपा पूरी तरह हिंदुत्व की और बढ़ रही है और अन्य विपक्षी पार्टियाँ इसको विरोध करते हुए सेक्युलर राग अलापते हुए पास आती जा रही हैं. हस्र क्या होगा भविष्य के गर्भ में है. इस साम्प्रदायिकता और धर्मनिरपेक्षता में पूरा देश दो हिस्सों में बँट जायेगा और भ्रष्टाचार, महंगाई, बेरोजगारी आदि का मुद्दा शांत हो जायेगा….
राजनीतिक पंडित अपना अपना आकलन करेंगे ..हमने अपना विचार प्रस्तुत किया है ..बस!
जय हिन्द!
             -  जवाहर लाल सिंह, जमशेदपुर.
 (यह लेख निर्झर टाइम्स के 15 जुलाई, 2013 के अंक में प्रकाशित है।)

बहू जो बन गई बेटी

आज तो सुबह सुबह ही पड़ोस के मोहन बाबू के घर से लड़ने झगड़ने की जोर जोर से आवाजें आने लगी| लो जी, आज के दिन की अच्छी शुरुआत हो गई सास बहू की तकरार से| ऐसा क्यों होता है जिस बहू को हम इतने चाव और प्यार से घर ले कर आते है, फिर पता नही क्यों और किस बात से उसी से न जाने किस बात से नाराजगी हो जाती है| जब मोहन बाबू के इकलौते बेटे अंशुल की शादी एक, पढ़ी लिखी संस्कारित परिवार की लड़की रूपा से हुई थी तो घर में सब ओर खुशियों की लहर दौड़ उठी थी| मोहन बाबू ने बड़ी ईमानदारी और अपनी मेहनत की कमाई
से अंशुल को डाक्टर बनाया| मोहन बाबू की धर्मपत्नी सुशीला इतनी सुंदर बहू पा कर फूली नही समा रही थी लेकिन सास और बहू का रिश्ता भी कुछ अजीब
सा होता है और उस रिश्ते के बीचों बीच फंस के रह जाता है बेचारा लड़का, माँ का सपूत और पत्नी के प्यारे पतिदेव, जिसके साथ उसका सम्पूर्ण जीवन
जुड़ा होता है| कुछ ही दिनों में सास बहू के प्यारे रिश्ते  की मिठास खटास में बदलने लगी| आखिर लडके की माँ थी सुशीला, पूरे घर में उसका ही
राज था, हर किसी को वह अपने ही इशारों पर चलाना जानती थी और अंशुल तो उसका राजकुमार था, माँ का श्रवण कुमार, माँ की आज्ञा का पालन करने को सदैव तत्पर| ऐसे में रूपा ससुराल में अपने को अकेला महसूस करने लगी लेकिन वह सदा अपनी सास को खुश रखने की पूरी कोशिश करती लेकिन पता नही उससे कहाँ चूक हो जाती और सुशीला उसे सदा अपने ही इशारों पर चलाने की कोशिश में
रहती| कुछ दिन तक तो ठीक रहा लेकिन रूपा मन ही मन उदास रहने लगी| जब कभी दबी जुबां से अंशुल से कुछ कहने की कोशिश करती तो वह भी यही कहता, ''अरे भई माँ है'' और वह चुप हो जाती| देखते ही देखते एक साल बीत गया और धीरे धीरे रूपा के भीतर ही भीतर अपनी सास के प्रति पनप रहा आक्रोश अब ज्वालामुखी बन चुका था| अब तो स्थिति इतनी विस्फोटक हो चुकी थी किदोनों में बातें कम और तू तू मै मै अधिक होने लगी| अस्पताल से घर आते ही माँ और रूपा की शिकायतें सुनते सुनते परेशान हो जाता बेचारा अंशुल| एक
तरफ माँ का प्यार और दूसरी ओर पत्नी के प्यार की मार, अब उसके लिए असहनीय
हो चुकी थी| आखिकार एक हँसता खेलता परिवार दो भागों में बंट गया और मोहन बाबू के बुढापे की लाठी भी उनसे दूर हो गई| बुढापे में पूरे घर का बोझ अब
मोहन बाबू और सुशीला के कन्धों पर आ पड़ा| उनका शरीर तो धीरे धीरे साथ देना छोड़ रहा था, कई तरह की बीमारियों ने उन्हें घेर लिया था, उपर से दोनों भावनात्मक रूप से भी टूटने लगे| दिन भर बस अंशुल की बाते ही करते रहते ओर उसे याद करके आंसू बहाते रहते| उधर बेचारा अंशुल भी माँ बाप से
अलग हो कर बेचैन रहने लगा, यहाँ तक कि अपने माता पिता के प्रति अपना कर्तव्य पूरा न कर पाने के कारण खुद अपने को ही दोषी समझने लगा और इसी
कारण से पति पत्नी के रिश्ते में भी दरार आ गई| समझ में नही आ रहा था की आखिकार दोष किसका है? रूपा ससुराल से अलग हो कर भी दुखी ही रही| यही सोचती रहती अगर मेरी सास ने मुझे दिल से बेटी माना होता तो हमारे परिवार में सब खुश होते| उधर सुशीला अलग परेशान| वह उन दिनों के बारे
सोचती जब वह बहू बन कर अपने ससुराल आई थी, उसकी क्या मजाल थी कि वह अपनी सास से आँख मिला कर कुछ कह भी सके, लेकिन वह भूल गई थी कि उसमे और रूपा में एक पीढ़ी का अंतर आ चुका है| उसे अपनी सोच बदलनी होगी, बेटा तो उसका
अपना है ही वह तो उससे प्यार करता ही है, उसे रूपा को माँ जैसा प्यार देना होगा अपनी सारी  दिल की बाते बिना अंशुल को बीच में लाये सिर्फ रूपा
ही के साथ बांटनी होगी| उसे रूपा को  अपनाना होगा, शारीरिक, मानसिक और भावनात्मक रूप से उसका साथ देना होगा| देर से आये दरुस्त आये| सुशीला को अपनी गलती का अहसास हो चुका  था और वह अपने घर से निकल  पड़ी रूपा को
मनाने|
            - रेखा जोशी
परिचय
रेखा जोशी
जन्म : 21 जून 1950 ,अमृतसर
शिक्षा : एम् एस सी [भौतिक विज्ञान] बी एच यू
आजीविका : अध्यापन, के एल एम् डी एन कालेज फार वीमेन, फरीदाबाद
हेड आफ डिपार्टमेंट, भौतिकी विभाग [रिटायर्ड]
कार्यकाल में आल इण्डिया रेडियो, रोहतक से विज्ञान पत्रिका के अंतर्गत अनेक बार वार्ता प्रसारण, कई जानी मानी हिंदी की मासिक पत्रिकाओं में लेख
एवं कहानियों का प्रकाशन।
अन्य गतिविधिया :
1- जागरण जंक्शन.काम पर ब्लॉग लेखन
२- ओपन बुक्स आन लाइन पर ब्लॉग लेखन
३- गूगल ओशन आफ ब्लीस  पर रेखा जोशी .ब्लाग स्पॉट.काम पर लेखन
४- कई इ पत्रिकाओं में प्रकाशन
(यहरचनानिर्झर टाइम्स के 15 जुलाई, 2013 के अंक में प्रकाशित है।)

Sunday 14 July 2013

जीवन

सादर अभिनन्दन सुधी वृन्द... 
महानुभावों! 
       आज बड़े ही हर्ष के साथ आपसे मुखातिब हो रही हूं,जिसके दो कारण हैं। एक तो यह कि एक लम्बे अन्तराल के बाद पूरे हृदय के साथ आपके समक्ष उपस्थित हो पा रही हूं और दूसरा ये कि हमारे सहयोगी आदरणीय श्री अरुन शर्मा जी के आँगन 'कन्या रत्न' का अवतरण हुआ है। हम अरुन भाई से हम मिठाई नहीं खा सकते कोई बात नहीं पर शब्द सुमन तो साझा कर सकते हैं न! इस खुशी के अवसर आदरणीय अरुन जी के साथ सम्पूर्ण समाज को,मैं एक महिला होने के नाते, महान विद्वान समर्सेट माम (Somerset Maughm) के कुछ शब्द समर्पित करना चाहूंगी- 
''A woman will always sacrifice herself if YOU give her opportunity. It is Favourite FORM for SELF INDULGENCE.'' 
        अब चलते हैं कुछ ऐसे लिंक्स पर, जो मुझे प्रभावित करने में सफल रहे। बाकी आप जरूर बताइगा कैसा लगा आज का संकलन-

मूल्यों के गिरते स्तर पर , ये कैसा भारत निर्माण ... नैतिकता के शव पे खड़ा , आज का बदलता हिंदुस्तान .... ये कैसा भारत निर्माण ... 















The bride kissed her father and placed some thing in his hand.  Everyone in the room was wondering what was given to the father by the...


आँगन में बिखरे रहे , चूड़ी कंचे गीत आँगन की सोगात ये , सब आँगन के मीत आँगन आँगन तितलियाँ , उड़ती उड़ती जायँ इक आँगन का हाल ल...





 खामोशियों के बंद दरवाज़े जिस आँगन में खुलते हैं वहाँ समय और गति के सारे समीकरण अपना अर्थ खो बैठे हैं...यहाँ एक ऐसा ब्लैक होल है जहां आकाश ...




  अन्त करते हैं ऋग्वेद की एक वेदोक्ति से- 
अचिकित्वांचिकितुषश्चिदत्र कवीन्पृच्छामि विद्मने न विद्वान। 
वि यस्तस्तम्भ षडिमा रजांस्यजस्य रूपे किमपि स्विदेकम्
 (मनुष्य संसार के विभिन्न रहस्यों को जानने का प्रयत्न अवश्य करे। जब तक वह संसार का आत्मिक और परमार्थिक ज्ञान प्राप्त नहीं कर लेता तब तक मनुष्य जीवन का उद्देश्य पूरा नहीं होता है।)

फिर मिलेंगे... 
तब तक के लिए नमस्कार!

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...