Tuesday 30 April 2013

एक झलक

राम राम सुधी वृन्द!
आज शनिवार से पहले ही...
     दरअसल पिछले कई महीनों से लगातार आदरणीय श्री बृजेश जी की कविताएं/लेख/संकलन आदि कई जगह, जैसे उजेषा टाइम्स, बारिस-ए-अवध, पूर्वाभास आदि में पढ रही हूं। कई साहित्यिक प्रतियोगिताओं में भी आपने बाजी मारी। फिर इस ब्लाग और 'निर्झर टाइम्स' समाचार पत्र के साहित्य अंक के आप मुख्य एडमिन् हैं, यहां एक संकलन तो आपकी रचनाओं/परिचय का होना ही चाहिए ।
    'निर्झर टाइम्स' बिधूना से प्रकाशित एक समाचार पत्र है, जिसका पेज नं-5 साहित्य को समर्पित है। हुआ यूं दोस्तों कि आदरणीय बृजेश जी के समर्पण को देखते हुए 'निर्झर टाइम्स' के संपादक आदरणीय श्री एस.पी.सिंह सेंगर जी ने ब्लाग का दायित्व आपको ही सौंप दिया। फिर कुछ दिन पहले मैं भी इस ब्लाग से जुड़ी।
     एक प्रस्तुति आपको समर्पित- परिचय देने की आवश्यकता नहीं क्योंकि 'पूर्वाभास' के लिंक मे सब कुछ है ही, इसके अलावा इतना जरूर कहूंगी कि आपकी लेखनी हर विधा में चली, चाहे ग़जल हो या नवगीत, हाइकू हों या भारती छंद, अतुकांत कविता या गद्य लेखन/लधुकथा। गजल पर तो छोटा-मोटा शोध आपने तैयार किया है। अंग्रेजी कविताओं को भी आपकी पैनी कलम ने तराशा। समसामयिक विषय शायद ही कोई बचा हो जो आपकी रचनाओं से अछूता रहा हो।
      प्रस्तुत है एक झलक-
पूर्वाभास: बृजेश नीरज की तीन कविताएँ

Voice of Silent Majority: डमरू घनाक्षरी/ प्रणय: नियम:- ३२ वर्ण लघु बिना मात्रा के ८,८,८,८ पर यति प्रत्येक चरण में…… प्रणय पवन बह, रस मन बरसत बढ़त लहर जस, तन मन गद गद चम...

Voice of Silent Majority: घनाक्षरी: ओपन बुक्स ऑनलाइन, चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक-२५ में मेरी रचना (चित्र ओबीओ से साभार) चौड़ी नही छाती मेरी, हौसला तो...

Voice of Silent Majority: दोहे/ नारी: तन मन निर्मल कांच सा, काया रूप अनूप। तू ममता की खान है, तू दुर्गा का रूप।। माता बनकर पालती, पत्नी से परिवार। बहन प्रेम...

Voice of Silent Majority: मेरे साथ सुर मिलाओगे: तुम्हें मेरी बात समझ नहीं आती या तुम सुनना ही नहीं चाहते? शायद पसंद नहीं तुम्हें कोई बात करे फुटपाथ और खेत की चीथड़ों और भू...

Voice of Silent Majority: लघुकथा ­- चमेली:      मंच के सामने आठ दस लोग कुर्सियों पर बैठे थे। सफेद झक कुर्ता पायजामा पहने छरहरे बदन का एक युवक मंच पर खड़ा भ...

Voice of Silent Majority: गद्य काव्य/ अवसाद:       इस गर्मी की दुपहरिया में मैं निश्चल शान्त बैठा था। कमरे के बाहर जैसे आग बरस रही हो। चमड़ी को छीलती सी गरम ...

Voice of Silent Majority: गज़ल/ अनजान रहा अक्सर: दीदार का बस तेरे अरमान रहा अक्सर इस प्यार से तू मेरे अनजान रहा अक्सर बाजार में दुनिया के हर चीज तो मिलती ...

Voice of Silent Majority: हाइकू/ बसंत: सभी मित्रों को होली की हार्दिक शुभ कामनायें ……. 1 ऋतु बसंत उत्सव व उल्लास मन अनंत। 2 अबीर मला क्लेष की ...

Voice of Silent Majority: हिन्दी गजल-1:      आजकल की भागदौड़ भरी जिंदगी में जहां अतुकान्त तथा छन्दमुक्त कविता ने अपना स्थान बनाया है वहीं छंदयुक्त कविता ने अ...

Voice of Silent Majority: क्षणिकाएं: कुम्हार रूप दे दो इधर उधर बिखरी हुई है ये मिट्टी रौंद रहे हैं लोग रंग काला पड़ने लगा कुछ कीड़े भी पनपने लगे इसे कोई र...

Voice of Silent Majority: मन: नित अनन्त अस्थिर मन क्या खोजा क्या पाया न समझा न समझाया कभी इधर की कभी उधर की दिग्भ्र...

Voice of Silent Majority: बुढ़ापा: तस्वीर कुछ बदरंग सी दिखने लगी है या चेहरा ही कुछ बेढंगा लगने लगा है जरिया कोई हो तो सूरत बदल ली जाए ...

Voice of Silent Majority: Grown Up ?: Sometimes it happens In the morning In the evening or any time Sometime When? Not fixed. When i am...

 इनके अलावा भी अनेक लोकप्रिय रचनाएं हैं जैसे-वक्त, क्लेष मिट गये, मित्र के नाम, हो गई है पीर पर्वत सी आदि...
नोट-यहां संकलित समस्त रचनाएं मेरे द्वार ही चयनित हैं, हो सकता इनसे भी गहन रचनाएं आपके ब्लाग Voice of silent mejority' पर हों, मेरी समझ उन रचनाओं तक न पहुंच पाई हो तो क्षमा करें।
ढेरों शुभकामनाओं के साथ मैं वन्दना।
सादर!

Sunday 28 April 2013

ग़ज़ल


      - क़तील शेफाई

तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है
इक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है

जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला
ज़िन्दगी ने मुझे दाँव पे लगा रखा है

जाने कब आये कोई दिल में झाँकने वाला
इस लिये मैंने ग़िरेबाँ को खुला रखा है

इम्तेहाँ और मेरी ज़ब्त का तुम क्या लोगे
मैं ने धड़कन को भी सीने में छुपा रखा है

दिल था एक शोला मगर बीत गये दिन वो क़तील
अब क़ुरेदो ना इसे राख़ में क्या रखा है


Saturday 27 April 2013

सफ़र...

सादर प्रणाम सुधी मित्रों...
कुछ तकनीकी दिक्कतों के कारण विलम्ब से उपस्थित हो पा रहीं हूं, क्षमा करें।
     आज के दौड़ते दौर में वेद-पुराण की उक्तियां शायद पृष्ठभूमि में चली गई हैं,फिर भी आज के अंक की शुरुआत एक वेदोक्ति से करना चाहूंगी-
''अदित्यै रास्नासीन्द्राण्याऽ उष्णीष:। 
पूषासि धर्माय दीष्व।। 
     अर्थात्, हे स्त्री! तू सृष्टि का प्रमुख आधार है। तू गृहस्थ का गौरव है। पृथ्वी के समान पालन करने वाली माता है। तू संसार कार्यों को पूर्ण मनोयोग से सम्पन्न कर।
     ये तो रही दोस्तों वेदों की बात,अब आज के दौर का सफर करते हैं,आपकी ही ज़बानी के साथ- ...

लम्हों का सफ़र: 401. अब तो जो बचा है...

Voice of Silent Majority: घनाक्षरी: ओपन बुक्स ऑनलाइन, चित्र से काव्य तक छंदोत्सव, अंक-२५ में मेरी रचना (चित्र ओबीओ से साभार) चौड़ी नही छाती मेरी, हौसला तो...

नजरिया: सुनिये गाय का दर्द - गाय के ही श्रीमुख से...

"हैवानियत का आलम' | भूली-बिसरी यादें

रंग-बिरंगी कुण्डलियाँ: कुण्डलिया - भारत की हम बेटियाँ, सीमापर तैनात: भारत की हम बेटियाँ, सीमापर तैनात। निर्भय हो मेरे वतन, खाएंगे रिपु मात॥ खाएंगे रिपु मात, प्राण से भी जाएंगे, कुटिल इर...

सिंहनाद: ये मेरा खरगोश, बड़ा ही प्यारा-प्यारा (रोला छंद): ये मेरा खरगोश, बड़ा ही प्यारा-प्यारा, गुलथुल, गोल-मटोल, सभी को लगता न्यारा। खेले मेरे साथ, नित्यदिन छुपम-छुपाई, चो...

Zindagi se muthbhed: अज़ीज़ जौनपुरी क्रूर नियति

Wings of Fancy: क्या जीवन है/हाइकू: १ बालू का स्थल जलाभास रश्मि से तपती प्यास २ प्रीति सुमन नागफनी का बाग व्यर्थ खोजना ३ तृप्ति कामना घी दहकाए ज्वाला पूर्ति आहुति ४...

शब्दिका : मन मन ही मन में घुलता है: चुप चाप समाधि सी बैठूं जीवन क्या यही शिथिलता है   मन सदा अशांत ही रहता है मन मन ही मन में घुलता है   खोकर अपना नन्हा सा शिशु न ...

 बदलाव नहीं होगा क्योंकि.......शब्दिका : सुमरि होरी रे! / लम्टेरा विधा: बुन्देली क्षेत्र में फाग के अवसर पर पुरुष और महिलाओं के समूह द्वारा गाया जाने वाला गीत   सुमरि होरी रे! / लम्टेरा विधा सुमरि  होरी रे!...

 उम्मीद तो हरी है .........: प्यार के खुरदुरेपन ने-------

गीत.......मेरी अनुभूतियाँ: कविता कहाँ है ?????????

नीरज की गृहस्थी: घरेलू नुस्खे:      यह हमारी आपकी पहली मुलाकात है। आशा है आप अपना साथ बनाए रखेंगे। आज शुरूआत करते हैं कुछ घरेलू नुस्खों से।

     इस सप्ताह में अनेकों बर्बर घटनाओं ने झकझोर के रख दिया,इसलिए आपके यथार्थ को बयां करते हुए इन लिंक्स ने चित्त को बहुत आकर्षिक किया। एक आशा के साथ विदा लेना चाहूंगी कि आने वाला सप्ताह सुखद रहे,जिससे मैं भी आपके साथ एक मुस्कान के साथ उपस्थित हो सकूं। अन्त में एक और वेदोक्ति-
                                        ''उलूकयातुं शुशुलूकयातुं जहि श्वयातुमुत कोयातुम्।
                   सुपर्णयातुमुत गृध्रयातुं दृषदेव प्र मृण रक्ष इन्द्र।।''-अथर्ववेद.८/४/२२ 
     अर्थात्, उल्लू के समान अज्ञानी,मोहग्रस्त,भेड़िये जैसा राग-द्वेष से युक्त,कोक जैसा कामातुर और गिद्ध जैसा लालची मत बनो।हे मनुष्यो! तुम इनको कुचल के रख दे तभी तेरा उत्कर्ष होगा।
         सादर!

Saturday 20 April 2013

ज़िन्दगीनामा

नमस्कार मित्रों.... आज के अंक में आपका हृदयातल से स्वागत है। कहते हैं न! जिंदगी में अनेक रंग होते हैं,सही ढंग से संयोजित हों तो एक खुशहाल बगिया...और कुछ असंयोजित हों पतझर...। ये तो कर्म और किस्मत की करामात है लेकिन वास्तव में जिंदगी तो सभी की अनेक रंगों से ही सजी होती है,अब वो रंग प्यार,सफलता, मान,अपमान,हास,उपहास... कोई भी हो सकता है। ये तो रही बात जिंदगी की दोस्तों,ऐसे ही कुछ रंगो,जो आपकी ही कला का परिणाम है, को चुनकर व संयोजित कर आपको ही समर्पित करने का प्रयास किया है। अपनी बहुमूल्य प्रतिक्रिया से इसे आप खूबसूरत बना सकते है-

ज़िन्दगीनामा: डर: स्याह सी खामोशियों के इस मीलों लंबे सफ़र में तन्हाइयों के अलावा .. साथ देने को दूर-दूर तक कोई भी नज़र नहीं आता . जी में आता है कि क...

उच्चारण: "ओ बन्दर मामा" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्री 'मयंक'): कहाँ चले ओ बन्दर मामा , मामी जी को साथ लिए। इतने सुन्दर वस्त्र आपको , किसने हैं उपहार किये।। हमको ये आभास हो रहा , शा...

बाँटने थे हमेंसुख-दुःखअंतर्मन की को...: अज्ञानता बाँटने थे हमें सुख - दुःख अंतर्मन की कोमल भावनाएं शुभकामनाएं और अनंत प्रेम पर हम बँटवारा करने में लग ...

http://kavitavali.blogspot.com/2013/04/blog-post_14.html

http://yatra-1.blogspot.in/2013/04/blog-post_18.html

काव्य मंजूषा: नारीवाद एक आन्दोलन ...!

Anil Dayama 'Ekla': माँ

Voice of Silent Majority: हाथी

अन्तर्गगन: गर तू खुद को नींद से जगा दे !

स्याही के बूटे .....: धूप का पुर्ज़ा: छप्पर की दरारों से .... चुपचाप झांकता आया था नंगे पाँव फर्श पे बैठा उकडूं फिर थककर ... खाट पे उंघियाया था रेंगा था कुछ दूर तलक भी दी...

Sudhinama: चंद हाईकू

काव्य मंजूषा: तेरी याद, फिर तेरी याद के, बोझ तले दब जाती है .....

hum sab kabeer hain: झूठी तस्वीर: कैमरे की क्लिक दर्ज कर गई कि गाल का गोलौटा भरा हुआ था दांत चमकते दिख रहे थे आंख अधखुली ठिठोली कर रही थी यूं समझो चेहरे पर कई भाव नृत्...

तमाशा-ए-जिंदगी: मेरा बचपन

WORLD's WOMAN BLOGGERS ASSOCIATION: महिला सशक्तिकरण और मुख्यमंत्री जी -एक राजनैतिक लघु...:  महिला सशक्तिकरण और मुख्यमंत्री जी -एक राजनैतिक लघु कथा एक राज्य के मुख्य मंत्री महोदय महिला उद्यमियों के कार्यक्रम में महिला -सशक्तिक...
आपकी प्रतिक्रिया की स्वागोत्सुक आदरणीय श्री बृजेश सर के साथ मैं वन्दना। सादर

Saturday 13 April 2013

नवरात्रि के पर्व पर मंगलकामना


विशेष निवेदन:- कुछ तकनीकी समस्याओं के कारण वंदना जी की मेहनत पर पानी फिर गया। कम्प्यूटर की समस्या के चलते उनके द्वारा चयनित लिंक्स और पोस्ट डिलीट हो गयीं।
उनकी श्रम को आदर देते हुए उनके ही शब्दों में आज की चर्चा एक नए रूप में आपके समक्ष प्रस्तुत है। आशा है आप गलतियों को क्षमा करेंगे।
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वासंतिक नवरात्रि के पर्व पर मंगलकामना के साथ करबद्ध शुभप्रभात! आदरणीय सुधी वृन्द New year के जोश को हम कई दिन पहले से कई दिन बाद तक बरकार रखते हैं तो 'नववर्ष' का जोश प्रतिपदा के बाद से फीका क्यों पड़ने लगा! लेकिन सौभाग्य की बात है कि इस बार विगत वर्षों की अपेक्षा जनमानस में ज्यादा उत्साह गोचर हुआ। यह नव संवत् 2067 की प्रथम मुलाकात है,इसलिए आप सभी को नववर्ष की हृदयातल से असीम शुभकामनाएं। अपनें जोश को कायम रखते हुए भारतीयता के धूमिल होते सूरज को पुन: दैदीप्यमान करने का सतत् प्रयास करें। इसी कड़ी मे आज की शुरुआत एक नन्हें कलाकार के अनोखे उपहार के साथ- - -

Sankalp's Pencil Strokes: Rose: नव संवत्सर तथा नव वर्ष की आप सभी को हार्दिक शुभकामनाएं!

भारतीय नारी: तेजाबी हमले का खुलासा -कांधला [शामली ]: तेजाब कांड का खुलासा, बहनोई समेत दो गिरफ्तार शामली : कांधला में दस दिन पहले चार सगी शिक्षिका बहनों समेत पांच लड़कियों पर तेजाब फेंकने

उच्चारण: "गणों के बारे में भी तो जानिए" (डॉ. रूपचन्द्र ...:        काव्य में रुचि रखने वालों के लिए और विशेषतया कवियों के लिए तो गणों की जानकारी होना बहुत जरूरी है । गण आठ माने जाते हैं! १ - य - यग...

भूली-बिसरी यादें : आने का शुक्रिया: चोटों पे चोट देते ही जाने का शुक्रिया पत्थर को बुत की शक्ल में लाने का शुक्रिया           जागा रहा तो मैंने नए काम कर लिए...

Wings of Fancy: 'मुझे वचाना': १ आ जाओ खेलो शीतल छाला देंगे मित्र बुलालो २ थक जाओ ज्यों आराम करो सब पंखा नीये त्यों ३ पक्षी देखोगे मेरे आंगन आओ चूजे भी पाओ ४ ...

मेरी धरोहर: क़ज़ा जब मेरा पता पूछने आई ...........नीलू प्रेम: जाने कितने ख़त लिखे मैंने तेरी याद में एक तू है जिसे पढने की फुर्सत नहीं है एक अरशा हो गया तेरा शहर छोड़े हुए और तुझे खबर लेने की फुर्सत नही...

अगली मुलाकात अगले शनिवार को कुछ नयें सूत्रों के साथ। माँ शक्ति सभी की लेखनी को एक अद्भुत शक्ति प्रदान करें और सफलता की नई ऊंचाइयों तक पहुंचाए। इन्ही शुभकामनाओं के साथ नमस्कार।

ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए


कुछ तकनीकी समस्याओं के चलते आज की शनिवारीय चर्चा आपके समक्ष प्रस्तुत नहीं की जा सकी। समस्या शायद मेरे कम्प्यूटर में है। इसके लिए क्षमा प्रार्थी हूं।
इस दिक्कत में बस यही आवाज निकल रही है.

ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए / 
-मख़दूम मोहिउद्दीन

ये कौन आता है तन्हाइयों में जाम लिए
जिलों[1] में चाँदनी रातों का एहतमाम लिए

चटक रही है किसी याद की कली दिल में
नज़र में रक़्स- बहाराँ की सुबहो शाम लिए

हुजूमे बादा--गुल[2] में हुजूमे याराँ में
किसी निगाह ने झुक कर मेरे सलाम लिए

किसी क़्याल की ख़ुशबू किसी बदन की महक
दर--कफ़स पे खड़ी है सबा पयाम लिए

महक-महक के जगाती रही नसीम--सहर[3]
लबों पे यारे मसीहा नफ़स का नाम लिए

बजा रहा था कहीं दूर कोई शहनाई
उठा हूँ, आँखों में इक ख़्वाब- नातमाम[4] लिए

शब्दार्थ:
1.  परछाहीं, आभा
2.  मदिरा और फूलों के समूह
3.  सुबह की ख़ुशबू
4.  अधूरा स्वप्न




Friday 12 April 2013

आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक


- मिर्ज़ा गालिब
आह को चाहिए इक उम्र असर होने तक
कौन जीता है तेरी ज़ुल्फ़ के सर होने तक।

आशिक़ी सब्र-तलब और तमन्ना बेताब
दिल का क्या रंग करूँ ख़ून-ए-जिगर होने तक।

हम ने माना कि तग़ाफुल न करोगे लेकिन
ख़ाक हो जाएँगे हम तुमको ख़बर होने तक।

ग़म-ए-हस्ती का ‘असद’ किस से हो जुज़ मर्ग इलाज
शमा हर रंग में जलती है सहर होने तक।

सब्र-तलब = Desiring/Needing Patience
तग़ाफुल = Ignore/Neglect
जुज़ = Except/Other than
मर्ग = Death
शमा = Lamp/Candle
सहर = Dawn/Morning

Saturday 6 April 2013

Wings of Fancy


आज से निर्झर टाइम्स की इस चर्चा की जिम्मेदारी आदरणीया वन्दना तिवारी जी द्वारा सहर्ष स्वीकार की गयी थी लेकिन कुछ तकनीकी समस्याओं के कारण वो चर्चा को आज मूर्त रूप नहीं दे पायीं इसलिए उनके सहायक के रूप में मैं आज यहां उपस्थित हूं।
वन्दना जी द्वारा यह निर्धारित किया गया है कि वे हर शनिवार को संकलन के रूप में चर्चा लेकर यहां उपस्थित होंगी। मैं अब से बीच बीच में साहित्य के पुरोधाओं की रचनायें लेकर आपके समक्ष उपस्थित होता रहूंगा।
तो पेश है वन्दना जी द्वारा संकलित आज की चर्चा-


Wings of Fancy: 'भावों का आकार': उर के आंगन मे बिखरी है भावों की कच्ची मिट्टी मेधा की चलनी तो है,हिगराने को कंकरीली मिट्टी रे मन! बन जा कुम्भज संयम नैतिकता के कुशल हस्त ...

hum sab kabeer hain: ज़िंदगी का सफ़र

उच्चारण: "ग़ज़ल-सलीके को बताता है..." (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘मयंक’)

स्वस्थ जीवन: Healthy life: साँस की बदबु:हँसी के कारण: "भले ही इंसान का व्यक्तित्व कितना ही अच्छा क्यों न हो मगर   उसकी एक कमी उसे लोगों के बीच हंसी का पात्र बना सकती है।" आज ...

Amrita Tanmay: सुनवाई चल रही है ...: अर्थ है तब तो अनर्थ है जिसपर व्याख्याओं की परतें हैं और उन परतों की कितनी ही व्याख्याएं हैं ... कहीं शून्य डिग्री पर उबलता-खौलता पा...

उच्चारण: "दीप अब कैसे जलेगा...?" (डॉ.रूपचन्द्र शास्त्री ‘...: रौशनी का सिलसिला कैसे चलेगा ? आँधियों में दीप अब कैसे जलेगा ? कामनाओं का प्रबल सैलाब जब बहने लगा , भावनाओं का सबल आलाप ...

Wings of Fancy: 'अंश हूं तुम्हारा': जब जिन्दगी के किनारों की हरियाली सूख गई हो पक्षी मौन होकर अपने नीड़ों मे जा छुपे हों सूरज पर ग्रहण की छाया गहराती ही जा रही हो मित्र स...

Voice of Silent Majority: दोहे - गंगा

हरफ़े अख़तर: दिल पर तेरा नाम बहुत है: दिल पर तेरा नाम बहुत है  मुझ को ये इनाम बहुत है ! चूल्हा  ठंडा   जेबें    खाली  आज हमे आराम बहुत है! हाँ हाँ तुम यमदू...

उम्मीद तो हरी है .........: हल्ला बोल बे--------

मेरी धरोहर: फिर नदी के पास लेकर आ गयी...........अन्सार कम्बरी: फिर नदी के पास लेकर आ गयी मैं न आता प्यास लेकर आ गयी|   जागती है प्यास तो सोती नहीं और अपनी तीव्रता खोती नहीं वो तपोवन हो के...

Fursat Ke Raat Din: DAWANAL (Forest Fire) / दावानल ........: Unrequited love or one-sided love is not very rare in this world which is also inhabited by egotistic and headstrong individuals. Sometimes,...

उच्चारण: "संस्मरण-वो फस्ट अप्रैल" (डॉ. रूपचन्द्र शास्त्र...:      एक अप्रैल अन्तर्राष्ट्रीय मूर्ख दिवस  यूँ तो   हर साल ही आता है। परन्तु मुझे इस दिन गुलबिया दादी की बहुत याद आती है।      बात आ...

मेरी ग़ज़लें, मेरे गीत/ प्रसन्नवदन चतुर्वेदी: जो जहाँ है परेशान है: आज एक ग़ज़ल प्रस्तुत कर रहा हूँ जिसे आप अवश्य पसन्द करेंगे, ऐसी आशा है... जो जहाँ है परेशान है । इस तरह आज इन्सान है। दिल में एक चोट गहरी-...


और अन्त में वन्दना तिवारी जी के शब्दों में एक अनूठी जानकारी-


'वन्दे सुधी मित्रों! 
हमारी भारत भूमि पर जन्मे महात्माओं/महापुरुषों ने स्वयं का ही जीवन नही संवारा बल्कि उनके विचारों से उनकी प्रेरणा से पूरा समाज क्या विश्व पल्लवित होता रहा है। जब-जब मन अशंत हुआ ऐसे ही शब्द रूपी विग्रह ने ढांढस बधाया और अग्रिम मार्ग प्रशस्त किया।आज ऐसी ही दिव्या आत्मा के प्रकाश के कुछ अश साझा कर रही हूं- 
एकबार 1898 ई. के ग्रीष्मकाल में स्वामी श्री विवेकान्द जी अपने परिकर के साथ भ्रमणरत थे, 3 जून को समाचार मिला कि उनके बायें हाथ', 'विश्वस्त' एवं शिष्य श्री जे.जे. गुडविन जी का देहान्त रात्रि में हो गया है।गुडविन एक कुशल आशिलिपिक थे। मर्मासहित स्वामीजी ने गहन शोक व्यक्त करते हुए गुडविन की माता को एक परिच्छेद सहित एक सहलाती हुई गुडविन को समर्पित एक कविता भेजी।फिर भगिनी निवेदिताकृत ग्रन्थ Notes On Some Wanderings के तृतीय अंक में द्रष्टव्य हुई।प्रस्तुत है सुमित्रानन्दन पन्त द्वारा उसी कविता का काव्यानुवाद- 
आगे बढे ओ' आत्मन!
अपने नक्षत्र जड़ित पथ पर हे परम आनन्दपूर्ण!!
बढो,जहां मुक्त विचार है, 
जहाँ काल से दृष्टि धूमिल नहीं होती, 
और जहाँ चिन्तन शान्ति और वरदान है तुम्हारे लिए ! 
जहाँ तुम्हारी सेवा बलिदान को पूर्णत्व देगी, 
जहाँ श्रेयस् प्यार से भरे हृदयों मे तुम्हारा निवास होगा, 
मधुर स्मृतियाँ देश और काल की दूरियाँ खत्म कर देती हैं। 
बलिवेदी के गुलाबों के समान 
तुम्हारे पश्चात विश्व को आपूरित करेगी। 
 अब तुम बन्धनमुक्त हो, 
तुम्हारी खोज परमानन्द तक पहुंच गई, 
आब तुम उसमें लीन हो,
जो मरण और जीवन बन कर आता है, 
हे परोपकाररत! 
हे नि:स्वार्थ प्राण,आगे बढो! 
इस संघर्षरत विश्व को 
अब भी तुम सप्रेंम सहायता करो।'' (
ज्ञातव्य हो कि गुडविन के कारण ही स्वामीजी ते व्याखानों को ग्रंथाकार मे रक्षित कर पाना सम्भव हुआ था)! 
सादर!'

आज की चर्चा में बस इतना ही। अब बृजेश नीरज को आज्ञा दीजिए।

Monday 1 April 2013

मेरी संवेदना


आप सभी का मूर्ख दिवस पर हार्दिक स्वागत। होली के तुरन्त बाद ‘मूर्ख दिवस’ कुछ अलग ही रंग लेकर आया है। इस रंगे बिरंगे माहौल में साहित्य के कुछ रंग आपके समक्ष प्रस्तुत हैं-


1- मेरी संवेदना: होली और तुम्हारी याद

2- hum sab kabeer hain: प्रेम

3- मेरी धरोहर: मैं शरणार्थी हूं तेरे वतन में..........सुमन वर्मा: कितना दर्द है मेरे जिगर में गली-गली मैं जाऊं आग से ...

4- Kashish - My Poetry: ‘उजले चाँद की बेचैनी’- भावों की सरिता:     अपनी  शुभ्र चांदनी से प्रेमियों के मन को आह्लादित करता, चमकते तारों से घिरा उजला चाँद भी अपने अंतस में कितना दर्द छुपाये रहता ...

5- मेरी धरोहर: अब क़ुरेदो ना इसे राख़ में क्या रखा है .......काति...:   तूने ये फूल जो ज़ुल्फ़ों में लगा रखा है इक दिया है जो अँधेरों में जला रखा है  जीत ले जाये कोई मुझको नसीबों वाला ज़िन्दगी ने मुझे द...

6- ज़रूरत: विक्रम वेताल १०/ नमकहराम: आज होली पर राजा विक्रम जैसे ही दातुन मुखारी के लिए निकला वेताल खुद लटिया के जुठही तालाब के पीपल पेड़ से उतर कंधे पर लद गया दोनों न...

7- जोश में होश खोना | भूली-बिसरी यादें

8- मेरा रचना संसार: मैं तेरा कितना हुआ हूँ ये मुझे याद नहीं...: न जाने कैसे भुलाने लगे हैं लोग मुझे, गए दिनों में गिनाने लगे हैं लोग मुझे। मैं तेरा कितना हुआ हूँ ये मुझे याद नहीं, हाँ तेरी कसम...

केदार के मुहल्ले में स्थित केदारसभगार में केदार सम्मान

हमारी पीढ़ी में सबसे अधिक लम्बी कविताएँ सुधीर सक्सेना ने लिखीं - स्वप्निल श्रीवास्तव  सुधीर सक्सेना का गद्य-पद्य उनके अनुभव की व्यापकता को व्...