अटूट बन्धन
- नरेन्द्र मोहन
हर चुभन,एकटीस उभारती है
गहरी खांइयां बनाती है
पर जिन्दगी के पहिए
रुकते नही,
रिश्ते सिसकते हैं
रूठते हैं-
पर मन से टूटते नहीं
लंगरों से बंधी नाँव
कैसे पार करेगी
उस महासागर को
जो आँखों में उभरता है
उठते हुए ज्वार
लंगर उठा नही सकते
नांव उलट सकते हैं
तोड़ सकते हैं
कुछ ऐसे बन्धन
जिन्हें...
मिटा नही सकते।।
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